कैसे खुद को सौंप दू किसी को?
कैसे भूल जाऊँ सब दर्द और पीड़ा को?
कैसे यह मान लूँ कि अपने पति में एक साथी नहीं, पति परमेश्वर ढूंढा हैं मैंने?
कैसे किसी को अपने अंतरमन के हर एक कोने तक जाने दूँ?
कैसे ये मान लूँ कि भूतकाल में जो हुआ था वो भविष्यकाल में नहीं होगा?
कैसे ये वादा दे दूँ कि कुछ भी हो जाये हम कभी अलग नहीं होंगे?
कैसे ये खुद को विश्वास दिलाऊँ कि फिर से एक बार कोशिश करते हैं?
कैसे ये खुद से कहुँ कि इस बार पक्का सब ठीक होगा?
कैसे उन अपनों के दुःख को भूल जाऊँ?
जिनको कभी किसी ने सात जन्म का वादा किया था, पर उनके साथ वो सात महीने भी ना रह पाएं....
वो सब भी तो मेरे अपने हैं...
उनका प्रारब्ध भी तो मुझसे जुड़ा हैं...
क्या उनके साथ जो हुआ वो मेरे साथ नहीं हो सकता?
वे तो धनवान थे, शक्तिशाली थे, रूपवान थे, गुणी थे...
फिर भी समय का पहिया जब चला तो सबको ढेर कर गया
आज वो ही लोग यादो में तड़पते हैं...
आज वो ही लोग नकली मुस्कान पहनते हैं
आज वो ही लोग या तो पापों का प्राश्चित कर रहे हैं
या फिर अपने ex-partners की EMIs भर रहे हैं...
पर जीवन में आगे नहीं बढ़ रहे हैं...
पर मुझे तो काफी आगे जाना हैं ना...
मुझे तो खुद के भी और औरों के सपने भी पूरे करने हैं ना...
मुझे तो कलयुग और कलयुगी पापों से परे हो जाना हैं ना...
तो, कैसे खुद को सौंप दू किसी को?
या कैसे सौंप दू किसी को भी?
विश्वास एक बार फिर कर सकती हूँ....
पर कोई विश्वास के लायक हैं?
आज तो सिर्फ फोटो क्या, पूरा जीवन का इतिहास तक बदला जा सकता हैं...
आज तो सिर्फ दुसरो से क्या, खुद तक से झूठ बोला जा सकता हैं...
आज तो २ क्या, एक साथ ४-४ बीवियाँ रखी जा सकती हैं....
ये ना पार्वति-शिव का युग हैं...
ये ना लक्ष्मी-नारायण का युग हैं..
और ये ना सोनी-महिवाल का युग हैं...
ये युग हैं झूठ का, फरेब का, छल का, मुखोटे का
ये युग हैं - "चले तो चाँद तक ना चले तो रात तक" का...
तो, ऐसे में कैसे सौंप दू किसी को?
और शायद ज्यादा महत्वपूर्ण ये हैं कि,
अगर में सौंप भी दूँ....
तो क्या वो सौंपेगा मुझे खुद को?
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