जब तक तुम हो तो अच्छा हैं...
जब तुम नहीं होंगे...तो भी अच्छा ही हो जाएगा...
क्यूँकि कोई आज तक किसी के लिए रुका हैं क्या..
कोई आज तक कही ठहरा हैं क्या...
कोई किसी का साया नहीं होता...कहते सब हैं कि सात जन्म का साथ..
कोई किसी के लिए ठहरा नहीं होता..कहते सब हैं कि नहीं छोड़ेंगे तुम्हारा हाथ....
पर हर कोई हवा कि झोखों कि जैसे होता हैं...और हवा का झोख़ा कभी रुकता हैं क्या...
वो तो आता हैं...फिर कभी तबाही करता हैं तो कभी सुकून देता हैं...पर दो पल को वो ठहरता नहीं...थमता नहीं...शांत नहीं बैठता...
चला जाता हैं...
तुम भी यूँही चले जाना...जिससे मैं यूँही नग़मे लिखते रहूँ...
और कहते रहूँ...
की जब तक तुम थे तो अच्छा था...
अब तुम नहीं हो...तो भी अच्छा ही हो गया हैं...।
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